यशवन्त सिंह कठोच

यशवन्त सिंह कठोच (Yashwant Singh Kathoch)

(माताः श्रीमती रुक्मिणी देवी, पिताः श्री मकर सिंह कठोच)

जन्मतिथि : 27 दिसम्बर 1935

जन्म स्थान : मासौं (चैंदकोट)

पैतृक गाँव : मासौं जिला : पौड़ी

वैवाहिक स्थिति : विवाहित बच्चे : 2 पुत्र, 1 पुत्री

शिक्षा : डी.फिल. 1978 में प्रस्तुत।

प्रारम्भिक शिक्षा- आधरिक विद्यालय व गाँधी जू.हाईस्कूल, मासौं

माध्यमिक शिक्षा- मेसमोर इंटर कालेज, पौड़ी

एम.ए. (राजनीतिशास्त्र)- आगरा विश्वविद्यालय

एम.ए. (प्रा. भार. इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व)- आगरा वि.वि.

डी.फिल.- विषयः गढ़वाल हिमालय का पुरातत्त्व,गढ़वाल विश्वविद्यालय

जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ः भागवतकथा श्रवण सांस्कृतिक अध्ययन के प्रति प्रेरणा का स्रोत बना। ‘ऐतिहासिक भूगोल’ की खोज में भारतीय इतिहास एवं संस्कृति से सानिध्य प्राप्त हुआ और फिर उत्तराखण्ड के इतिहास एवं पुरातत्त्व का एकनिष्ठ विद्यार्थी बन गया।

प्रमुख उपलब्धियां : प्रारम्भ में हिन्दी में अनेक कविताएँ, लघु कथाएँ एवं निबन्ध लिखे। इसके बाद 1965 से भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व पर कार्य किया। पफलस्वरूप अनेक शोधपत्र व पांच पुस्तकें प्रकाशित हुईं। ‘मध्य हिमालय का पुरातत्त्व (1981), ‘मध्य हिमालय खण्ड-1 (1996) तथा ‘मध्य हिमालय खण्ड-2 (2002) पुरातत्त्व के क्षेत्र में चर्चित पुस्तकें हैं। अनेक शोधलेख प्रकाशित। संस्कृति एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र में मौलिक योगदान के लिए 1995 तथा 2002 में सम्मानित।

युवाओं के नाम संदेशः 1. उत्तराखण्ड के युवा सर्वप्रथम मादक व्यसनों से दूर रहें

2. जन्मभूमि से पलायन न करें 3. पाश्चात्य संस्कृति के रंग में लिप्त होकर अपनी अस्मिता को न भूलें 4. आंचलिक विश्वविद्यालयों में इतिहास एवं हिन्दी भाषा में ऐसे शिक्षकों को भी लावें जो आंचलिक इतिहास तथा भाषा से निकट सम्बंध रखते हों, क्योंकि अब तक विश्वविद्यालयों द्वारा स्थानीय इतिहास की खोज एवं पर्वतीय भाषा-बोलियों पर शोध हुआ ही नहीं हैऋ 5. वर्तमान में उत्तराखण्ड के इतिहास, संस्कृति एवं सीमाओं पर कुछ हमले हुए हैं, जैसे- नैनीताल जनपद का विभाजन, उत्तरांचल नाम तथा दुराग्रह, स्वतंत्र पर्वतीय राजाओं को मुगलों का मनसबदार बताना, आदि। युवा इन पर सजग रहें। मेरा अभिमत है कि शोध के किसी भी क्षेत्र में एकनिष्ठ समर्पण तथा प्रत्यक्ष दर्शन ही लाभदायी होता है।

विशेषज्ञता : पुरातत्व, इतिहास, भाषा, लोक साहित्य।

 

नोट : यह जानकारी श्री चंदन डांगी जी द्वारा लिखित पुस्तक उत्तराखंड की प्रतिभायें (प्रथम संस्करण-2003) से ली गयी है.

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